आज विश्व श्रोता दिन के अवसर पर सभी श्रोतागण को बधाई और आज के दिन कई शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है, जिसमें महाराष्ट्र के पैठण शहरमें हमारे विविध भारती के चहीते उद्दघोषक श्री अशोक सोनावणेजी मंच संचालन के लिये आयोजको द्वारा आमंत्रीत किये गये है जिसे मूझे उमरख़ेड के श्री अभिजीत गोवनकरजीने विडीयो चेट के दौरान बताया था और वे ख़ूद जाने वाले है । इसी प्रकार एक कार्यक्रम बडोदरा में भी श्री मनोहर महाजन द्वारा संचालित किया जानेवाला है । और आज ही के दिन पिछले वर्ष उनकी किताब 'यादें रेडियो सिलोन की' रायपूरमें उनके द्वारा लिख़ीत और सम्पादीत जयपूर के वान्गमय प्रकाशन के श्री राजेष अग्रवाल द्वारा प्रकाशित की गई थी, जो मूझे इसकी किमत भेजने पर समय से पूर्व प्राप्त हो गई थी । इस बूकमें श्री मनोहरजीने कई बड़ी प्रसारक हस्तीयों और हम जैसे आम श्रोताओं के अपने उनके साथ वाले या एकल फोटो के साथ अपनी राय मांगी थी जो मैनें भेजी थी उसका मूल स्वरूप और बादमें प्रकाशित स्वरूप कहाँ से कहाँ उनके नादान सहायकोने विकृत कर दिया उसकी कहानी यहाँ नीचे सब के सब चित्र पढ़ कर आप को मालूम होगा कि मूझे उनके अणघड सहायकोने कैसे नीचे गिरा दिया है । यहाँ जब उसी सेरिमंनी के दौरान यह गलती की स्पस्टता करने को एस एम एस भेजा था तब उन्होंनें सामूहीक गलतियों का ही जिक्र करके आस्वासन दिया था कि नयी एडिसनमें यह गलतियाँ सुधार दी जायेग़ी, और मेरे एस एस के द्वारा फ़िर बादमें याद कराने पर वही बात कही गई । पर आज तक़ नयी एडिसन नहीं आयी और मूझे आने की सम्भवना नहीं दिख़ाई पड़ रही है । और अब तक की बिक्री से किताब पाने वाले मूझे ज्यादा कमअक्कल मानेंगे उसकी जवाबदेही किसकी ! महाजन साहब ही आख़री जवाबदार रहते है । रेडियो, टीवी और मंच संचालनमें उनकी होशियारी को यहाँ नीचा दिख़ाना मेरा कोई इरादा नहीं है और किताबमें अपनी बातों को उन्होंनें करीब 25% ही स्थान दिया है , जब कि अन्यो6 द्वारा कि गई उनकी तारीफ़ को ज्यादा जगह मिली है । पत्रों को सम्पादीत करे, जगह के हिसाब से वहाँ तक कोई विवाद नहीं है पर इस प्रकार विकृत करते है जैसे मेरे नाम श्री एनोक डेनियेल्स के हाथों से अपना प्रिय पियानो-एकोर्डियन छिन कर इलेक्ट्रीक गिटार थमा देना यह कैसे माफ़ किया आ सके ? अन्य गलती आप इस पन्ने की स्केंन कोपी नीचे कित्रोमें से एक पर देख़ेंगे मेरी बोलपेन रिमार्क्स के साथ तो आप को इसकी गम्भीरता तूरंत ख़याल आयेगी ।
अब मेरे मूल पत्र की प्रत पढीये जो उनसे मेईल से जेपीजी और पीडीएफ दोनों रूप से भेजी थी ।
और इस किताब के मेरे हाथमें आने के बाद और जारि करने के समारंभ के पहेले मेरे द्वारा उनसे और उनके प्रकाशक श्री राजेष अग्रवालजी से किये गये मेईल को भी पढ़ीये । हालाकि राजेषजी बहूत उमदा स्वभावके है और कई बार मूझे फ़ोन करके बात कर चूके है ।

पियुष महेता ।
सुरत-395001.