On 30th January, 2014 former Gujarati announcer, who had presented a program Kabhi Kabhi and Wo Kon hai live in Hindi, since his joining in service till his retirement, had come to Surat to perform his Hindi drama MAHA PRAYAN with his own group KALA NIKETAN. On this occasion, I also got invitation to see the drama sponsored by Daxin Gujarat Vijali Company, as mt name was recommended by Shri Bharat bhai himself. I was also regular listener of these programs from the day of starting the program up to the last episode of the same. And as I was taking part in the same I was known to him by name and sometimes we had talked on phone. But this was the first face-to-face meet between us. And from his busy schedule, he talked to me in front of my video camera in the lounge of the Auditorium. We both remembered Shri Gopal Sharma ji.) So, do enjoy: (Please bare with some noises around us).
30वी जनवरी, 2014 के दिन यानि गांधी निर्वाण दिन के उपलक्ष्यमें आकाशवाणी राजकोट के सेवा निवृत गुजराती उद्दघोषक श्री भरत याज्ञिक, जो अपनी सेवा के शुरूआती दोन से अपने निवृती के दिन तक जय भारती अन्तर्गत हिन्दी में सजीव प्रसारण के रूपमें 'कभी कभी' और 'वो कोन है ?' के नाम से कार्यक्रम करते थे, वे अपनी नाट्य संस्था कला निकेतन के साथ महा प्रयाण (हिन्दी) नाटक ले कर आये थे, जो दक्षिण गुजरात विजळी कम्पनी द्वारा प्रायोजीत था और मूझे श्री भरत भाई के सौजन्य से ही आमंत्रीत किया गया था । तो भरतभाई एक उनके कार्यक्रम के नियमित श्रोता के रूपमें उसमें भाग लेने के कारण पहेले नाम से और बादमें फोन पर होती रही बात से जानते थे । पर उनको रूबरू मिलने का यह पहेला मोका था । तो उस प्रेक्षागार के लाऊंजमें उन्होंने अपने कुछ: अनुबवो की बात मेरे केमेरे के सामने की तो वह सुनिये और देख़ीये ।(हम दोनोंने गोपाल शर्माजी को याद किया है ।) (थोडी आसपास की आवाझ के लिये क्षमा)
30वी जनवरी, 2014 के दिन यानि गांधी निर्वाण दिन के उपलक्ष्यमें आकाशवाणी राजकोट के सेवा निवृत गुजराती उद्दघोषक श्री भरत याज्ञिक, जो अपनी सेवा के शुरूआती दोन से अपने निवृती के दिन तक जय भारती अन्तर्गत हिन्दी में सजीव प्रसारण के रूपमें 'कभी कभी' और 'वो कोन है ?' के नाम से कार्यक्रम करते थे, वे अपनी नाट्य संस्था कला निकेतन के साथ महा प्रयाण (हिन्दी) नाटक ले कर आये थे, जो दक्षिण गुजरात विजळी कम्पनी द्वारा प्रायोजीत था और मूझे श्री भरत भाई के सौजन्य से ही आमंत्रीत किया गया था । तो भरतभाई एक उनके कार्यक्रम के नियमित श्रोता के रूपमें उसमें भाग लेने के कारण पहेले नाम से और बादमें फोन पर होती रही बात से जानते थे । पर उनको रूबरू मिलने का यह पहेला मोका था । तो उस प्रेक्षागार के लाऊंजमें उन्होंने अपने कुछ: अनुबवो की बात मेरे केमेरे के सामने की तो वह सुनिये और देख़ीये ।(हम दोनोंने गोपाल शर्माजी को याद किया है ।) (थोडी आसपास की आवाझ के लिये क्षमा)
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