इस ब्लोगमें रेडियो श्रोताके रूपमें आने वाले दिनों मूझे होए वाले अनुभव , कुछ समिक्षा किसी बडी रेडियो या सिने-संगीतसे जूडी हस्ती से मुलाकात (मिल पाती है तो) प्रकाशित होगी । ज्यादा बातें रेडियो सिलोन और विविध भारती सेवा की होगी । पर कभी कभी हो सकता है कि बात रेडियो से नहीं पर जिसके कारण रेडियो है, वह संगीत के बारेमें जरूर होगी ।
मेरे बारे में
- PIYUSH MEHTA-SURAT
- 3 अक्तूबर, 1957 से विविध भारती के स्थापना दिनसे ही रेडियो सुनने की शुरूआत । ८ साल की उम्रसे ।
सोमवार, 27 अगस्त 2012
स्व. हृषिकेश मुख़र्जी 27 अगस्त पूण्य तिथी पर शब्दांजलि
आज भारतकी फिल्म शौख़ीन जनता की फ़िल्मो की पसंद में सकारात्मक परिवर्तन करने वाले यानी साफ़-सुथरी फ़िर भी सफ़ल फिल्मों के निर्माता-निर्देषक, सम्पादक और एक पाठशाला समान श्री हृषिकेश मुख़र्जी की भी स्व. मूकेशजी के अलावा पूण्यतिथी है । पर विविध भारती की केन्द्रीय सेवा के सदा-बहार गीत कार्यक्रम को छोड़ बहोत कम याद किया गया, जब की गायक को काम और नाम तभी नसीब होता है, जब कि हृषिदा जैसे लोग अच्छे विषय पर फिल्में बनानेका साहस करके गुणी संगीतकारों तथा साथ साथ गीतकारों के लिये काम खडा करते है ।
हृषिदाने संवेदनशील फिल्में तो बनाई ही है पर हास्यप्रधान फिल्मोंमें भी साफ-सुथरापन और स्थूल हास्य के स्थान पर परिस्थितीजन्य हास्य को अपनी फिल्मों में बखूबी इस्तेमाल किया । और यह भी हर बार एक नयी कहानी और नया विषय ले कर । पाश्चात्य संगीत के लिये जानेमाने श्री राहुल देव बर्मन साहब को कई बार अपनी फिल्मोंमें गुलझारजी के गानों के साथ उन्होंनें लिया और बड़े सुन्दर गाने हमें प्राप्त हुए । कई अभिनेताओं की स्थापित छबीयों को उन्होंने बखूबी बदा डाला । उदाहरणके तौर पर हीमेन के रूपमें जाने पहचाने श्री धर्मेन्द्र को मझली दीदी, सत्यकाम और अनूपमा जैसी संवेदन शील फिल्मोंमें चावीरूप भूमीकाएं दी तथा चूपके चूपकेमें बड़ी मझेदार हास्य कलाकार हीरो के रूपमें प्रस्तूत किया । बिन्दूजी और शशिकलाजी को वेम्प यानि ख़ल-नायिका के रूपमें से बाहर निकालके अनुपमा, अभिमान और अर्जून-पंडित (चरित्र अभिनेत्रीके रूपमें बिन्दूजी ) भी प्रस्तूत किया । ग्ल्रेमरस भूमिका के लिये जानिमानी शायरा बानूजी को चैतालीमें सादगी भरी भूमिकामें प्रस्तूत किया । और देवेन वर्माजी का सह अभिनेता या ख़ल नायक (देवर) के रूपमें से हास्य अभिनेता के रूपमें फिल्म बूढ्ढा मिल गया से परिवर्तन किया । श्री बासु चेटर्जीने हास्य-प्रधान फिल्में अपने तरीकेसे बनाई पर साफ-सुथरापन और परिस्थितीजन्य हास्य के हृषिदा के राह पर तो वे चले ही चले । यानि हृषिदाका प्रदान कई जगहो पर मील का पत्थर साबित हुआ । हास्य फिल्मों की कोई भी चर्चा उनके नामोल्लेख़ के बिना अधूरी ही है । श्री युनूसजी द्वारा सम्पादीत और प्रस्तूत हास्य-प्रधान फिल्मों के स्तर पर मंथन कार्यक्रममें एक कड़ीमें मूझे इस बारेमें बोलनेका मोका मिला था ।
इन दोनों व्यक्तिविषेषों को रेडियोनामाकी और से श्रद्धांजलि ।
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